वर्टिकल फार्मिंग 2025: भारत का टिकाऊ भविष्य या सिर्फ़ एक शहरी ट्रेंड?

Ravi k
By Ravi k
A modern indoor vertical farm in an Indian city warehouse: vibrant green lettuce and herbs growing on multi-level racks under bright LED lights, with an Indian city skyline visible through the windows.

आज अगर किसी से कहो कि इमारतों में ऑफिस की जगह पालक उगाई जा रही है, तो शायद वो मज़ाक समझे। लेकिन भारत की 1.4 अरब की आबादी और ज़मीन की भारी कमी को देखते हुए, अब खेती के लिए नए रास्ते तलाशने की ज़रूरत है। वर्टिकल फार्मिंग यानी ऐसी खेती जो इंडोर हो, एलईडी लाइट्स के नीचे हो, और बिना मिट्टी के हो – क्या वाकई ये समाधान है या सिर्फ़ अमीरों का नया शौक?

भारत क्यों सोच रहा है खेती को नए सिरे से?

भारत की पारंपरिक खेती आज कई तरह की चुनौतियों से जूझ रही है:

  • आबादी का विस्फोट: खेत घट रहे हैं, लोग बढ़ रहे हैं। प्रति व्यक्ति खेती की ज़मीन कम होती जा रही है।
  • मौसम की मार: पिछले कुछ सालों में करीब 34 मिलियन हेक्टेयर फसल बाढ़ से और 35 मिलियन सूखे से बर्बाद हुई।
  • पानी की कमी: भारत के 84% पानी का इस्तेमाल खेती में होता है। बारिश गड़बड़ हुई, तो खेत उजड़ जाते हैं।
  • शहरों की भूख: मुंबई, दिल्ली जैसे शहरों में लोग साल भर ताज़ी सब्ज़ी चाहते हैं। रिपोर्ट्स कहती हैं कि इन शहरों की 60% ताज़ा सब्ज़ियाँ अब लोकल अर्बन गार्डन से आती हैं। नेशनल हॉर्टिकल्चर बोर्ड का मानना है कि अगले कुछ सालों में शहरों की 40% सब्ज़ी की ज़रूरत अर्बन फार्म से पूरी हो सकती है।

यानी साफ़ है – जब पानी कम हो, ज़मीन घट रही हो और शहर के लोग फ्रेश सब्ज़ी ढूंढ रहे हों, तो टेक्नोलॉजी की ज़रूरत है। और वहीं से आता है वर्टिकल फार्मिंग का कॉन्सेप्ट।

वर्टिकल फार्मिंग कैसे काम करती है?

यह खेती खेतों से हटकर बिल्डिंग के अंदर होती है। इसे समझिए ऐसे:

  • हाइड्रोपोनिक्स और एयरोपोनिक्स: मिट्टी नहीं, पौधे पानी या पोषक तत्वों की फुहार में उगते हैं। पानी रीसायकल होता है – एयरोपोनिक सिस्टम में 90% तक पानी की बचत होती है।
  • मल्टी-लेयर गार्डन: एक ही जगह पर कई मंज़िलों में सब्ज़ियाँ उगती हैं। एक रिपोर्ट कहती है कि 30 मंज़िल की फार्मिंग इमारत, लगभग 2400 एकड़ खेत के बराबर उत्पादन कर सकती है।
  • कंट्रोल्ड क्लाइमेट: एलईडी लाइट्स, तापमान सेंसर, ह्यूमिडिटी कंट्रोल – ये सब मिलकर पौधों को परफेक्ट माहौल देते हैं। न बारिश की टेंशन, न ठंड की मार – फसल साल भर।

सीधा सा मतलब: वर्टिकल फार्म एक हाईटेक इनडोर गार्डन है, जहां मौसम और कीड़े दोनों आउटसाइड हैं।

भारत में कौन कर रहा है ये खेती?

कई भारतीय स्टार्टअप इस पर काम कर रहे हैं:

  • UrbanKisaan (बेंगलुरु/मुंबई): इनका दावा है कि इनडोर लैट्यूस की पैदावार खेत की तुलना में 30 गुना ज्यादा है, और पानी 95% कम लगता है।
  • UGF Farms (मुंबई): शहर की खाली छतों को हाइड्रोपोनिक फार्म में बदलते हैं। कार्बन जीरो ग्रोइंग और कम्युनिटी ट्रेनिंग भी करते हैं।
  • Triton FoodWorks (दिल्ली): 1.5 लाख स्क्वायर फीट की इनडोर फार्म जहां 20 से ज्यादा फसलें उगती हैं – स्ट्रॉबेरी से लेकर धनिया तक।
  • 365D Farms (पुणे): एक कंटेनर में साल भर सलाद उगाने वाला फार्म, हाई-टेक सॉल्यूशन।

मार्केट का हाल?

2025 तक भारत का वर्टिकल फार्मिंग मार्केट लगभग 200 मिलियन डॉलर तक पहुँच सकता है। ग्लोबल मार्केट 40 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। एशिया-पैसिफिक में तो 2023 के 1.3 बिलियन से बढ़कर 2029 तक 6 बिलियन तक जाने का अनुमान है।

फायदे क्या हैं?

  • लोकल, सालभर सब्ज़ियाँ: ताज़ा, हेल्दी, बिना ट्रांसपोर्ट के – डायरेक्ट शहर में उगाई गई सब्ज़ियाँ।
  • कम जगह, ज़्यादा फसल: एक छोटी जगह पर रैक्स लगाकर उत्पादन को कई गुना बढ़ा सकते हैं।
  • पानी की भारी बचत: 90-95% तक कम पानी लगता है।
  • स्वस्थ और सेफ फूड: कीट नहीं, इसलिए कीटनाशक नहीं। ऑर्गेनिक क्वालिटी में फायदा।
  • एक जैसी गुणवत्ता: मौसम के असर से फ्री – हर बार एक जैसी बढ़िया फसल।

चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं

  • स्टार्टिंग खर्चा: LED लाइट्स, एयर कंट्रोल, बिल्डिंग स्पेस – शुरुआत में लागत बहुत ज़्यादा है।
  • बिजली की खपत: 24/7 पंप और लाइट चलते हैं। अगर ग्रिड या डीज़ल पर हो तो खर्च और कार्बन फुटप्रिंट दोनों बढ़ते हैं।
  • सीमित फसलें: आज की तारीख में सिर्फ पत्तेदार सब्ज़ियाँ, हर्ब्स और थोड़े फल ही उगते हैं। चावल या गेहूं नहीं।
  • स्किल की कमी: गांवों के किसान अभी इसे अजीब चीज़ मानते हैं। हाइड्रोपोनिक्स की जानकारी बहुत कम लोगों को है।
  • सरकारी नियम: शहरों में खेती की इजाज़त, बिल्डिंग कोड, और परमिट एक बड़ा चैलेंज हैं।

लोगों की राय – किसान, शहरी लोग और इन्वेस्टर्स

  • शहर के लोग: उन्हें ताज़ा और केमिकल-फ्री सब्ज़ियाँ चाहिए। ऐप्स के ज़रिए कई स्टार्टअप डेली बॉक्स डिलीवर भी कर रहे हैं।
  • किसान: थोड़े कन्फ्यूज़ हैं। ज़्यादातर किसान अभी भी गेहूं, धान, सब्ज़ी खुले खेतों में उगाते हैं। उनके लिए ये टेक्नोलॉजी दूर की बात है।
  • इन्वेस्टर्स: 200 मिलियन डॉलर का प्रोजेक्शन उन्हें आकर्षित कर रहा है, लेकिन वापसी धीमी है। जो फार्म सही से रन हो रहे हैं, वहीं मुनाफा कमा रहे हैं।

निष्कर्ष: भविष्य या सिर्फ़ हाइप?

मेरी राय में – वर्टिकल फार्मिंग सिर्फ़ एक ट्रेंड नहीं है। ये भारत के फूड सिस्टम का एक अहम हिस्सा बन सकता है, खासकर शहरों के लिए। मैं खुद बेंगलुरु के एक फार्म में गया था – नीली एलईडी लाइट्स के नीचे उगती पालक देखी। लग तो रहा था जैसे कोई साई-फाई फिल्म हो, लेकिन उसका सलाद एकदम असली और स्वादिष्ट था।

हालांकि, पंजाब के धान किसान या महाराष्ट्र के प्याज उगाने वालों से बात करो, तो वर्टिकल फार्मिंग अभी भी ‘दूसरी दुनिया’ लगती है। यह पारंपरिक खेती की जगह नहीं लेगा – बल्कि उसे सप्लीमेंट करेगा।

तो क्या 2030 तक वर्टिकल फार्म भारत को खिला पाएंगे? शायद नहीं पूरी तरह, लेकिन शहरों के लिए ये एक मजबूत ऑप्शन ज़रूर बन सकता है। ताज़ी सब्ज़ियाँ, कम पानी में, बिना कीटनाशक – और हां, युवाओं के लिए हाईटेक जॉब्स भी।

अंत में: ये एक सलाद टॉवर है, चावल का खेत नहीं। लेकिन हां, अगर स्मार्ट तरीके से किया जाए – तो वर्टिकल फार्मिंग भारत के फ्यूचर का एक जरूरी हिस्सा बन सकती है।

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