
2018 से शुरू हुई अमेरिका की ट्रेड वॉर की कहानी अब 2025 में फिर से चर्चा में है। डोनाल्ड ट्रम्प की लीडरशिप में अमेरिका ने स्टील और एल्युमिनियम जैसे इम्पोर्टेड प्रोडक्ट्स पर भारी टैरिफ़ (25% और 10%) लगाकर ग्लोबल ट्रेड को झटका दे दिया था। अब अप्रैल 2025 में अमेरिका ने एक बार फिर “रिसिप्रोकल” टैक्स लगाते हुए भारत (26%), चीन (54%), यूरोप (20%) और जापान (24%) पर नए टैरिफ थोप दिए हैं। ये कदम अमेरिका के इम्पोर्ट ड्यूटी को WWII के बाद के सबसे ऊँचे लेवल पर ले गया है। WTO के अनुसार, इससे वर्ल्ड ट्रेड में लगभग 3% की गिरावट हो सकती है।
भारतीय बाजारों में हड़कंप
जैसे ही ये खबर आई, भारतीय स्टॉक मार्केट्स में अफरा-तफरी मच गई। सेंसेक्स और निफ्टी 5% तक गिर गए – जो कई सालों में सबसे बड़ा झटका था। सिर्फ 7 अप्रैल 2025 को ही बाज़ार की वैल्यू ₹14 से ₹19 लाख करोड़ तक घटी। बड़ी अमेरिकी निर्भरता वाली कंपनियों जैसे Tata Group की मार्केट वैल्यू में अकेले ~₹2.4 लाख करोड़ की गिरावट आई।
ऑटोमोबाइल, मेटल, IT, फार्मा, जेम्स, टेक्सटाइल – लगभग हर सेक्टर पर असर पड़ा। विदेशी निवेशकों ने भी डर के मारे पैसे निकाल लिए। नतीजा ये रहा कि सोने की कीमतें बढ़ीं, सरकारी बॉन्ड्स की डिमांड बढ़ी और रुपया कई महीनों के निचले स्तर पर आ गया। जिन कंपनियों का बिज़नेस अमेरिका पर ज्यादा निर्भर है, उन्हें सबसे ज्यादा नुकसान झेलना पड़ा।
निवेशकों में डर और गिरावट
7 अप्रैल का दिन ‘ब्लैक मंडे’ जैसा बन गया। हर सेक्टर गिरा – खासकर ऑटो, मेटल, फार्मा, टेक्सटाइल, IT और जेम्स में बड़ी गिरावट देखी गई। सेंसेक्स-निफ्टी में भारी बिकवाली ने आम निवेशक को एक ही दिन में ₹14.2 लाख करोड़ का नुकसान दिया। एक्सपर्ट्स का मानना है कि ये गिरावट ज्यादातर सेंटिमेंट से आई है, फंडामेंटल्स अब भी स्टेबल हैं। अगर अमेरिका और बाकी देशों के बीच समझौता होता है, तो मार्केट तेज़ी से रिकवर भी कर सकता है।
भारत-अमेरिका ट्रेड रिश्ते और रिएक्शन
भारत और अमेरिका का द्विपक्षीय व्यापार $190 बिलियन से भी ऊपर है, जिसमें भारत को ~$50 बिलियन का सरप्लस मिलता है। अमेरिका का कहना है कि भारत के टैरिफ़ (17% औसतन) काफी ज़्यादा हैं, जबकि अमेरिका सिर्फ 3% के आसपास टैरिफ़ लेता है। ऐसे में अमेरिका ने ‘रिसिप्रोकल’ रुख अपनाते हुए ये नया टैक्स लगाया।
भारत के पास अमेरिका जैसी बराबरी से पलटवार करने की ज्यादा गुंजाइश नहीं है क्योंकि भारत की कई एक्सपोर्ट आइटम्स (जैसे दवाइयाँ और फूड प्रोडक्ट्स) अमेरिका में पहले से ही ड्यूटी-फ्री हैं। फिर भी भारत ने 2018 में $900 मिलियन के अमेरिकी एग्री प्रोडक्ट्स (सेब, बादाम वगैरह) पर टैरिफ़ का ऐलान किया था, लेकिन उसे लागू करने से पहले बात-चीत शुरू हो गई और फिलहाल मामला होल्ड पर है।
अप्रैल 2025 में अमेरिका ने भारत को 90 दिनों की राहत दी है – जुलाई तक कुछ एक्सपोर्ट्स पर नया टैक्स नहीं लगेगा, ताकि बातचीत आगे बढ़ सके। लेकिन दोनों देशों के रिश्तों में तनाव बना हुआ है। भारत को अब बहुत समझदारी से कदम उठाने होंगे – एक तरफ अमेरिका से दोस्ती रखनी है, तो दूसरी ओर अपने इंडस्ट्रीज़ को भी प्रोटेक्ट करना है।
बाकी दुनिया की हालत
भारत अकेला नहीं है। ट्रम्प की टार्गेट लिस्ट में सबसे ऊपर चीन है, जिस पर अब 54% औसतन टैक्स लग रहा है। जवाब में चीन ने भी 800 अमेरिकी प्रोडक्ट्स पर ड्यूटी लगाई। हाल ही में उसने सभी अमेरिकी इम्पोर्ट्स पर 34% का टैक्स भी लगा दिया। इसके बाद ट्रम्प ने धमकी दी कि टोटल टैक्स 104% तक जाएगा। इस वजह से हॉन्ग कॉन्ग, शंघाई और ताइवान के स्टॉक मार्केट्स में 7-9% तक गिरावट आई।
यूरोप और अमेरिका के बीच भी टेंशन है। 2018 में यूरोप ने WTO के ज़रिए अमेरिका का विरोध किया और काउंटर-टैरिफ़्स लगाए। लेकिन 2021 में बाइडन सरकार ने कुछ राहत दी थी। अब फिर से यूरोप पर करीब 20% टैक्स लगाया गया है। कनाडा और मेक्सिको को USMCA समझौते के बाद कुछ राहत मिली थी, लेकिन चाइनीज़ इनपुट्स की वजह से अब भी लागत बढ़ रही है।
इंडो-पैसिफिक के बाकी देश जैसे वियतनाम, सिंगापुर आदि फिलहाल रिटैलिएशन से बच रहे हैं। वो अपनी एक्सपोर्ट मार्केट को डायवर्सिफाय कर रहे हैं और अमेरिका से सीधे बातचीत की कोशिश में हैं।
आर्थिक और रणनीतिक बदलाव
ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं है, इसका असर जियोपॉलिटिक्स पर भी पड़ रहा है। चीन से मैन्युफैक्चरिंग हटाकर अब कई कंपनियाँ भारत, ब्राज़ील जैसे देशों की तरफ देख रही हैं। अगर इंडिया अपने इम्पोर्ट ड्यूटीज़ को थोड़ा आसान करे और इंफ्रास्ट्रक्चर पर तेज़ी से काम करे, तो ये मौका बन सकता है।
साथ ही, ट्रेड नियमों पर अमेरिका के इस रवैये से WTO जैसी संस्थाओं पर भरोसा कम हो रहा है। चीन की RCEP जैसी नई ट्रेड ब्लॉक्स को इससे फायदा हो सकता है। अमेरिका के साथ सुरक्षा के मामले में भारत की नज़दीकी (जैसे QUAD) बढ़ रही है, लेकिन साथ ही भारत यूरोप, मिडिल ईस्ट और रूस के साथ भी अपने रिश्ते मज़बूत करने में लगा है।
आगे क्या?
कम-से-कम शॉर्ट टर्म में तो भारतीय बाजारों में उतार-चढ़ाव जारी रहेगा। इंपोर्ट महंगे होने से महंगाई और ग्रोथ पर असर हो सकता है। लेकिन भारत के बहुत से एक्सपोर्टर पहले से ही ऐसे हालातों में काम करने के आदी हैं – खासकर फार्मा और IT सेक्टर। अगर अमेरिका और भारत के बीच कोई समझौता हो जाता है, तो मार्केट तेज़ी से रिकवर कर सकता है।
लंबे समय में देखा जाए तो ये घटना भारत को अपने ट्रेड नियमों में बदलाव लाने, इम्पोर्ट टैक्स कम करने और फ्री मार्केट की ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है। कुल मिलाकर, ट्रम्प की ये पॉलिसी भारत के लिए एक इम्तिहान भी है और एक मौका भी। अब देखना है कि भारत इस चुनौती का जवाब कैसे देता है – बातचीत, पॉलिसी रिफॉर्म या इंडस्ट्री को सपोर्ट देकर।
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