छोटा Pacemaker: नवजात बच्चों के लिए नई जीवनरक्षक तकनीक

Imdad husain mukhi
By Imdad husain mukhi
Pacemaker smaller than a grain of rice, made for newborn babies with heart defects

हमारे देश में, खासकर छोटे शहरों और गांवों में, ऐसे कई बच्चे जन्म लेते हैं जिनका दिल बहुत कमजोर होता है। कुछ बहुत जल्दी पैदा हो जाते हैं, कुछ इतने नाजुक होते हैं कि उनका दिल ठीक से धड़क ही नहीं पाता। कई बार ऑपरेशन की जरूरत होती है, और कई बार सिर्फ दिल की धड़कन को सही रखने वाले उपकरण की। लेकिन जब इलाज के लिए जो मशीनें हैं, वो भी बच्चे से बड़ी हों, तो हम क्या करें? अब ऐसे ही हालात में एक नई और बेहद छोटी उम्मीद सामने आई है एक ऐसा pacemaker जो चावल के दाने से भी छोटा है। सुनने में अजीब लगे, लेकिन यही छोटा सा यंत्र हजारों बच्चों की जान बचा सकता है। खासतौर पर हमारे जैसे इलाकों में, जहां हर सुविधा नहीं होती।

क्या है ये नया Pacemaker?

Pacemaker यानी वो डिवाइस जो दिल की धड़कन को कंट्रोल करता है आमतौर पर बुज़ुर्गों या हार्ट पेशेंट्स के लिए इस्तेमाल होता है। लेकिन अब बात हो रही है नवजात शिशुओं की, जो बस कुछ दिन के ही होते हैं। उनके लिए आज तक के normal pacemakers बहुत बड़े और रिस्की थे।

अब वैज्ञानिकों ने एक ऐसा pacemaker बनाया है जिसे शरीर में इंजेक्शन से लगाया जा सकता है न सर्जरी की जरूरत, न टांके, न कोई तार। बस एक सीरिंज से इसे अंदर डाला जाता है, और ये काम शुरू कर देता है।

और सबसे बड़ी बात? कुछ दिन बाद ये शरीर के अंदर ही घुल जाता है। यानि बच्चे को निकालने के लिए फिर से ऑपरेशन नहीं करना पड़ेगा। माता-पिता के लिए इससे बड़ी राहत और क्या होगी?

हमारे देश के लिए क्यों है ये बड़ी बात?

सच कहें तो, हमारे देश में बड़े शहरों में तो अच्छी अस्पतालें और सुविधाएं मिल जाती हैं। लेकिन गांवों में हालात बिल्कुल अलग हैं। कई सरकारी अस्पतालों में तो सामान्य हार्ट सर्जरी तक ठीक से नहीं हो पाती, ऐसे में महंगे और बड़े मेडिकल डिवाइस की बात तो दूर की है।

अब सोचिए, अगर ऐसा pacemaker सिर्फ एक इंजेक्शन से लगाया जा सके, तो डॉक्टर इसे छोटे अस्पतालों में भी इस्तेमाल कर पाएंगे। यानि गांवों और कस्बों में पैदा हुए कमजोर बच्चों को भी अब जीने का एक मौका मिल सकता है।

कैसे काम करता है ये छोटा Pacemaker?

बिना ज्यादा टेक्निकल बातों में जाएं, ये pacemaker शरीर के अंदर के नेचुरल फ्लुइड्स की मदद से चलता है। इसके अंदर छोटे-छोटे मेटल के टुकड़े होते हैं, जो लिक्विड से संपर्क में आते ही हल्की-हल्की इलेक्ट्रिक पल्सेस छोड़ते हैं — जो दिल को धड़कते रहने में मदद करते हैं।

इस डिवाइस को कंट्रोल करने के लिए डॉक्टर एक छोटा सा स्टिकर बच्चे की छाती के ऊपर लगाते हैं, जो लाइट सिग्नल्स भेजकर pacemaker को निर्देश देता है कि कैसे काम करना है। न कोई दर्द, न कोई तार।

करीब एक हफ्ते बाद जब बच्चे का दिल मजबूत हो जाता है, तब ये डिवाइस अपने आप शरीर में घुल जाता है। न कोई निशान, न कोई ऑपरेशन की जरूरत।

सिर्फ नवजातों के लिए बना है ये चमत्कार

ये कोई आम pacemaker का छोटा वर्जन नहीं है। इसे खास तौर पर नवजातों के लिए ही डिज़ाइन किया गया है — खासकर उन बच्चों के लिए जो जन्म के बाद हार्ट सर्जरी से गुज़रते हैं और कुछ दिनों के लिए ही दिल को सपोर्ट चाहिए होता है।

पहले डॉक्टर ऐसे बच्चों को आम pacemaker लगाते थे, जिसे बाद में निकालने के लिए दोबारा सर्जरी करनी पड़ती थी। उस दर्द और खतरे से बचाने के लिए ही ये नया तरीका आया है — बिना किसी दूसरी सर्जरी के।

कहां बना और क्यों?

ये खास डिवाइस अमेरिका की Northwestern University के इंजीनियर्स ने तैयार किया है। उन्होंने दुनिया के उन हिस्सों के बारे में सोचा, जैसे भारत, जहां हजारों नवजात सिर्फ इसलिए नहीं बच पाते क्योंकि इलाज के लिए सही साधन मौजूद नहीं होते।

इसे महंगे दिखावे के लिए नहीं, बल्कि स्मार्ट और सिंपल बनाने के लिए डिजाइन किया गया है — जो अपने काम को चुपचाप कर दे और फिर शरीर में ही घुल जाए। जैसे किसी मासूम के लिए शरीर के अंदर छुपा एक फरिश्ता।

भारत में बदलाव ला सकता है ये छोटा Pacemaker

भारत में हर साल करीब 2.5 करोड़ बच्चों का जन्म होता है। इनमें से लाखों बच्चों को दिल की समस्याएं होती हैं। गांवों में अक्सर इलाज समय पर नहीं मिल पाता — कभी जानकारी की कमी, कभी पैसों की, तो कभी साधनों की।

अगर ये डिवाइस सरकारी अस्पतालों तक पहुंच जाए, अगर NGOs इसकी जानकारी और मदद करें, तो नतीजे बहुत बड़े हो सकते हैं। छोटे शहरों और गांवों में भी survival rate बढ़ सकता है।

एक सच्ची कहानी से मिली प्रेरणा

अमेरिका में Mikey नाम का एक नवजात बच्चा था, जो इतना छोटा था कि उसे आम pacemaker लगाना नामुमकिन था। उस वक्त डॉक्टरों के पास कोई हल नहीं था। ऐसी ही कहानियों ने इस टेक्नोलॉजी को जन्म दिया।

भारत में तो ऐसे मामलों की भरमार है। जब यहां इसका इस्तेमाल शुरू होगा, तब सैकड़ों बच्चों की जिंदगी बदल सकती है। वो बच्चे जिन्हें ज़िंदा रहने का एक और मौका मिल सकता है।

छोटी चीज़, बड़ी सोच

सच कहें तो ऐसी खोजों पर गर्व होता है। लेकिन साथ ही अफ़सोस भी कि ऐसी टेक्नोलॉजी इतनी देर से क्यों आई? न जाने कितने मासूम इससे पहले दुनिया से चले गए।

हालांकि, ये डिवाइस हर समस्या का हल नहीं है लेकिन एक बहुत अहम शुरुआत जरूर है। कभी-कभी सबसे बड़ा समाधान किसी भारी मशीन में नहीं, बल्कि एक चावल के दाने जितनी छोटी चीज़ में छुपा होता है।

आखिरी बात

अगर आप डॉक्टर हैं, नर्स हैं, हेल्थ वर्कर हैं या बस एक आम नागरिक जो फर्क लाना चाहता है तो इस बारे में बात कीजिए। इसे शेयर कीजिए। सरकार तक आवाज पहुंचाइए कि ये भारत में जल्द से जल्द पहुंचे।

और अगर आप एक पेरेंट-टू-बी हैं, तो जान लीजिए साइंस आपके बच्चे के लिए लगातार कोशिश कर रहा है। एक छोटी खोज, एक नई उम्मीद।

🔗 कुछ ज़रूरी लिंक

इस अनोखे Pacemaker के बारे में ज़्यादा जानने के लिए Northwestern University ज़रूर देखें।

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